जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है,
॥४॥
मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं,
उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है,
ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है,
जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।
॥५॥
भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
जिनका मुकुट चंद्रमा है,
जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,
जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है,
जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।
॥६॥
शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,
जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था,
जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं,
जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।
॥७॥
मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं,
जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,
उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है,
वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,
सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।
॥८॥
भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं,
जिनकी शोभा चंद्रमा है,
जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है,
जिनकी गर्दन (गला) बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।
॥९॥
मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,
पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,
जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।
॥१०॥
मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं
शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।
॥११॥
शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड
तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है,
जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,
गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।
॥१२॥
मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता,
जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि,
घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति,
सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति,
सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?
॥१३॥
मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए,
अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए,
अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,
महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?
॥१६॥
इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है,
वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।
इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है।
बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।